Tuesday, January 1, 2008

।। पाकिस्तान किसे आवाज दूं।।

शायद पाकिस्तान की इस हालत का अंदाजा जोश मलीहाबादी जो भारत की आजादी के 12 सालो बाद ही पता चल गया था। शांति निकेतन में पढे और शायर-ए- इन्कलाब के खिताब से नवाजे और जनता के लोकप्रिय इस शायर को पंडित नेहरू ने पद्म भूषण की उपाधि से भी नवाजा गया। मगर वो पाकिस्तान जाने की ललक को नही रोक पाये। पाकिस्तान जाकर उन्होने नज्म लिखी, उसे पढ कर अंदाजा लगाया जा सकता है। हिन्दुस्तान का हाथ कांट कर बने, इस मुल्क की हालत क्या थी और इसके रहनुमाओ का जनता के प्रति नजरिया क्था ?

किसको आती है मसीहा- ई क्से आवाज दूं,
बोल ऐ खूंखार तनहाई किसे आवाज दूं।।
चिप रहुं तो हर दामस्ता है नागन की तरह,
आह भरने मे है रूसवाई किसे आवाज दूं।।
उफ्ह खामोशी की ये आहें दिल को भरमाती है,
उफ्ह ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज दूं।।

पाकिस्तान मे बेनजीर की हत्या के बाद आज वहा फिर किसी की सुनवाई नही रही। जिया-उल–हक ने जुल्फिकार अली भूट्टो का राजनीतिक कत्ल करवा दिया गया। तब फारत के तत्कालीन पीएम मोरारजी देशाई खामोश रहे। खामोशी हमेशा अच्छी नही होती। पाकिस्तान मे आज हालात यही है कि किसे आवाज दे कौन सुनेगा।
अगर आप के दिल मे कुछ है तो कह दिजीये कौन सुनेगा, किसे सुनाये, कैसे सुनाये। पर ये मत कहियेगा की कोई अपनी गलती की सजा भूगत रहा है
क्यो कि गलती हो चुकी है ।

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