Sunday, January 20, 2008

ख़ुशी या गम

बढ़ती गाङि़याँ या बढ़ती समस्याएँ

दिल्ली के आँटो एक्सपो में गुरुवार को टाटा मोट्रस ने अपनी एक लाख रुपय की कार पेश कर दी हैं।ये कार भारत ही नहीं ब्लकि दुनिया की सबसे सस्ती कार हैं। कम्पनी द्वारा कार मध्यम वर्गीय व दुपहिया चालकों को ध्यान में रख कर बनाई गई हैं। जिससे आम आदमी भी कार खरीदकर अपना सपना आसानी से पूरा कर सके। टाटा मोट्रस द्वारा उठाया गया ये कदम सराहनीय हैं।

जहाँ एक तरफ़ खुशी हैं वहीं दूसरी तरफ़ चिन्ता का विषय भी हैं कि यदि हर व्यक्ति कार खरीद लेगा तो चलाएगा किधर !
भारत विशव का दूसरा सबसे बङ़ा दुपहिया वाहनों का बाज़ार हैं वहीं चौपहिया वाहनों में भारत का स्थान गयारवाह हैं। भारत के कई बङ़े शहरो में पहले से ही व्यस्तम सङ़को पर वाहनो की भरमार हैं उन वाहनो से निकलता धुआँ भी पर्यावरण को दूषित कर रहा हैं। एक सर्वेक्षण से दिल्ली में सबसे ज़्यादा कार हैं यानि प्रति एक हज़ार की जनसंख्या पर दिल्ली में 85 निजी कार हैं. उसके बाद लुधियाना और चेन्नई का स्थान आता है भारत में इस समय लगभग सात करोड़ दोपहिया वाहन और 1 करोड़ निजी कारें हैं और ये संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. सवाल ये उठता है कि क्या भारत की सड़कें इनका बोझ सहने को तैयार हैं.
आज भारत तेल का पचह्तर प्रतिश्त हिस्सा आयात कर रहा हैं यदि इसी तरह वाहनो की संख्या बढ़ती रही तो तेल की खरीददारी और दाम तो बढ़ेगे ही साथ ही पर्यावरण पर भी बुरा असर पङ़ेगा। ये सिर्फ़ छोटी गाड़ी का नहीं ब्लकि ये सब गाड़ियों का सवाल है.
भारत पिछले कुछ वर्षों से वाहन जगत में नौ प्रतिशत से अधिक दर से विकास कर रहा है.
विकास की इस दौड़ में शामिल होने का हक़ सभी को है लेकिन ये ज़िम्मेदारी भी सरकार और लोगों की है कि विकास की दौड़ में आंखे खुली रखी जाएं.।

ये सभी आँकङ़े बी.बी.सी हिन्दी की वेबसाइट से लिए गए हैं।

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