Thursday, January 24, 2008

राजपथ से नहीं गुजरी थी पहली परेड

भारतीय गणतंत्र की 58 वीं वर्षगाँठ पर रक्षा मंत्रालय ने अपने पुराने दस्तावेज जारी कर इस धारणा को गलत साबित किया है कि 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र की पहली मुख्य परेड राजपथ से होकर गुजरी होगी।गत अगस्त में मंत्रालय ने अपने ऐतिहासिक दस्तावेज से इस बात का भी खुलासा किया था कि आजादी के बाद पहली बार लाल किले पर तिरंगा 15 अगस्त को नहीं बल्कि 16 अगस्त 1947 को फहराया गया था। रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले 4 फरवरी 1950 के फौजी अखबार में उस ऐतिहासिक दिन का ब्यौरा दिया गया है जब भारतवासी देश को गणतंत्र घोषित किए जाने से गर्वातिरेक में डूबे हुए थे।भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इर्विन स्टेडियम में सशस्त्र बलों की भव्य परेड की सलामी ली थी और 31 तोपों ने गरज गरज कर दुनिया को संदेश सुनाया था कि अब भारत की सरकार भारत के लोग बनाएँगे और वह भारतवासियों की अपनी और उनके लिए बनने वाली सरकार होगी।फौजी अखबार इतिहास दर्ज करते हुए लिखता है कि 1950 में जनवरी के 26वें दिन बृहस्पतिवार को सुबह दस बजने के अठारह मिनट बाद भारत को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। उसके इसके छह मिनट बाद बाबू राजेंद्र प्रसाद को गणतांत्रिक भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई।उस समय गवर्मेंट हाउस कहलाने वाले मौजूदा राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में राजेंद्र बाबू के शपथ लेने के बाद दस बजकर 30 मिनट पर तोपों की सलामी दी गई। उनका कारवाँ दोपहर बाद ढाई बजे गवर्मेंट हाउस से इर्विन स्टेडियम के लिए रवाना हुआ। राजेंद्र बाबू पैंतीस साल पुरानी लेकिन विशेष रूप से सुसज्जित बग्गी में सवार हुए जिसमें छह बलिष्ठ ऑस्ट्रेलियाई घोड़े जुते हुए थे।इस कारवाँ को देखने के लिए सड़कों पर अपार जन समूह उमड़ पड़ा था और लोक मकानों की छतों, पेड़ों शाखाओं और हर सम्भव ऊँचाई वाले स्थानों पर आ जमे थे। इर्विन स्टेडियम में हुई मुख्य परेड को देखने के लिए 15 हजार लोग मौजूद थे। फौजी अखबार के अनुसार इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे।गणतंत्र की पहली परेड की शोभा बढ़ाने के लिए इंडोनेशिया के प्रसिद्ध नेता सुकर्णो आए थे। उस समय इंडोनेशिया का नाम युनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडोनेशिया हुआ करता था।

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