Wednesday, January 2, 2008

प्रेम का समाजशास्श्र

प्रेम का समाजशास्श्र

प्रेम पर पहरा न केवल युवा दिलो को झकझोरता दिखा अपितु नाजुक मुद्दे पर गर्म बहस को भी आमंत्रण देता दिखा। कहा जाता है कि प्यार और अपराध संगीन के साये में ही पलते है। इस अढाई अक्षर प्यार का बैरी समाज कमोवेश शुरू से ही रहा है। इस लिए प्रेम पर पहरा को नई बात नही है प्रेम की प्रकती और नियति भी यही है क्योकि हमारा भारतीय समाज एक बंद समाज रहा है जो आज भी संक्रमण काल से गुजर रहा है।
जरासल सवाल उठता है कि पूर्व के प्यार और आज के प्यार का चरित्र व कथा बदली है या वही है। जवाब क्या है कुछ कहते है कि पूर्व का प्यार बहुत हद तक इबादतपरस्त था तो वही कुछ कहते है आज के दौर मे आर्थिक उदारीकरण और संचार क्रांति के व्यापक प्रभाव ने प्रेम के स्वरूप को बदल दिया है और कहते है आज के प्रेम मे त्याग, बलिदान, नि:स्वार्थ भाव,समर्पण, अंर्तमन की कोमलता तथा मिलन या बिछडाव में यथावत तटस्थ श्रद्धा का घोर अभाव दिखता है। आज बजारवाद इस कदर हावी है कि लडको को छोड दीजिए वे तो पुर्व से ही बदनाम है। आज की अल्ट्रामार्डन लडकीयां भी किसी से प्यार और दोस्ती उसकी हैसियत देखकर करती है। आखिर फ्रैन्डशिप डे, किट्टी पार्टी, वेलेंटाइन डे की भी तो लाज रखनी है यानी सादगी और आत्मीयता की जगह पैसा और चंचल मन की घुर्तता ने ले ली है। मै ना ही प्रेमी, ना ही प्रेमिका, ना ही प्रेम का विरोधी हूं। पर आज बैठे-बैठे मन ने खुद से सवाल पूछा जिसमे मैने खुद को उलझा हुआ पाया। आप क्या कहते है ??????????????????.............................

1 comment:

Anonymous said...

प्रेम अपने आप में एक शास्त्र है। इसे समझने के लिए जीवन छोटा प्रतीत होता है।